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Wednesday, August 18, 2010

इसी कुछ में

कुछ रास्ते.....
हमेशा घास के भीतर ही रह जायेंगे
कुछ रिश्ते.......
बिना बात के निभते चले जायेंगे,
कुछ पन्ने.......
हमेशा ही कोरे रह जायेंगे,
कुछ कवितायें.......
कभी नहीं पढ़ी जायेंगी.
इसी कुछ में
कई ज़ाती जिंदगानी दराज़ होंगी
जहाँ कुछ बातें.......
हमेशा बचकानी रह जायेंगी.

Wednesday, August 11, 2010

वो दुनियां अगर

वो दुनियां विश्लेषण की कैंची से परे
तर्क के सैंड पेपर से दूर हम खड़े
जो था बस कल्पना थी .....मन था......सपने थे.....

जहां परियां थीं
बोतल में बंद जिन्न था
भूत, पिशाच बिजूका
और झाडू पर उड़ने वाली चुडैलें थीं
बचपन की वो दुनियां
जो पीछे छूट गयी
कहानियों वाली दुनियां
कॉमिक्स वाली दुनियां
रेडियो और अखबारों वाली दुनियां ......

वो गुड्डे-गुडिया की शादी की दुनियां
वो परियों की कहानियों की दुनियां
वो शरबत की दुनियां
जिसके लिए नींबू चुराए थे हमने
वो पहली पहली बार पिकनिक की दुनियां
जिसमे चूल्हे जलाए थे हमने
वो पूड़ी जो कच्ची भी-पक्की भी प्यारी थीं
वो सब्जी जो हम मिनटों में चट कर जाते थे
फिर बर्तनों से टन-टन लड़ाई की दुनियां
वो मीठे मोहब्बत के झगड़ों की दुनियां ..........

वो काग़ज़ की बंदूकों से धिच्क्यों का खेला
वो दुर्गाबाड़ी के चैती दुर्गा का मेला
उस मेले में संवरकी के बेर की चटनी
खिचड़ी के परसाद के लाइन का रेला
वो पानी के मूछों की दुनिया
वो मूंछों में सनसनाती पानी की दुनियां
वो दुनिया तुम्हारी थी वो दुनिया थी मेरी
कहाँ छोड़ आये चक्कलस की दुनियां ......