WELCOME TO MY BLOG

style="display:block"
data-ad-client="ca-pub-7310137663178812"
data-ad-slot="7458332332"
data-ad-format="auto">




View My Stats

Search This Blog

Saturday, July 27, 2013

मैं वक़्त से कहता हूँ.

मैं वक़्त से कहता हूँ ,
गाहे-बगाहे तू भी फ्लश चला लिया कर!
वो दो साल पहले जो
आवाज़ में आसमान घोल के गाती थी,
उसकी निगाहों में मोच आ गयी है.
जबकी मैं उसकी ओर बढ़ता हूँ तो वो समझती है
मैं बेशरम सा वहीं खड़ा कोई मफ़लर हिला रहा हूँ .

वो दरिया के किनारे जिस स्कूल में मैंने
पहली बार इन्सान को  मुर्गा बनते देखा था,
वहीं जहाँ टिफ़िन के समय हम अपना पेट लंच से कम
और शेह्तूतों से ज़्यादा भरते थे-
उस स्कूल की जगह कब का सुपर मार्केट बन गया.
सुना है वो चाट वाला भी मर गया
जिसके पैसे हमने अब तक नहीं चुकाए।

ऐसे ढेरों किस्से हैं , भरे-भरे!
लवनी के लवनी टंगे
भूत के ताड़ों पे और
मैं वक़्त से कहता हूँ ,
गाहे-बगाहे तू भी फ्लश चला लिया कर!

इतना सा ही उधार तो रह गया है
कि पूरा जीवन उधार हो गया है,
बेशर्मी के शेह्तूत, डाल-डाल, पोर-पोर खिले हैं.
कुछ इसी महीने के हैं - हरे-हरे! कच्चे !
जिसे पाने की उधार की आस में
मैं स्टेव पर कुछ क्रोशे, कुछ मिनम
और कुछ सेमी-क्वेवर बो रहा हूँ,
उस गायिका के सुरों से भी ज़्यादा खट्टे
कुछ सूर्ख़! पके! रस भरे!
पिछले महीनों के.

अब तो आती हुई साँसों को भी कहता हूँ -
कि दे जाना है तो दे जाओ
लौटा नहीं पाउँगा,
इसलिए मैं वक़्त से कहता हूँ कि
गाहे-बगाहे तू भी फ्लश चला लिया कर!

पुल के नीचे से ट्रेन बस गुज़र रही है
और दिल्ली का ये ट्रिप, दोस्त के लिए शादी का उपहार
सब निपट रहा है
एक और शेह्तूत के हरे गुच्छों से.
तिलक ब्रिज पर गाडी थोड़ी धीमी हो रही है,
हो सके तो मेरे लौटने के पहले
एक बार फ्लश चला ले.
तेरी आस में टँगी लवनियाँ
हवा के हिलकोरे पर
डुबुक-डुबुक करती हैं
या पता नहीं मुझे डूब जा-डूब जा कहती हैं.
मैं वक़्त से कहता हूँ ,
गाहे-बगाहे तू भी फ्लश चला लिया कर!