दुःख का
एक अपना ही संविधान है
जिसमे न जाने
कितनी जटिल धाराएँ हैं
और यहाँ
संशोधन की गुंजाईश
कतई नहीं है
बस संशोधनों के नाम पर
दुःख..........
एक नए कलेवर में पेश होता है
हालाँकि,
सभी इस कोशिश में हैं कि
संशोधनों के
सुखद परिणाम निकल सकें
लेकिन , दूसरी मुश्किल ये भी है कि
मेरे हिस्से के सुखों के
पास जीवन के संसद
में प्रवेश की पात्रता ही नहीं है।