जाने.... कैसे......
ख़्वाबों की जगह बनाऊँ,
टूटे...... कुछ छूटे........
उन ख़्वाबों को कहाँ सजाऊँ,
उन गलिओं का न कोई पता
उन रिश्तों में न अब है सदा
उन ज़ख्मों की अब न दवा
जो छू के आये हम.
जाने.... कैसे......
ख़्वाबों की जगह बनाऊँ,
टूटे...... कुछ छूटे........
उन ख़्वाबों को कहाँ सजाऊँ.
मिलते-मिलते जो मिल जाते हैं
वो ख़्वाब कहे जाते हैं,
मिल के भी जो न मिल पाते हैं
वो भी ख़्वाब कहे जाते हैं.
काश के मिलसे उनसे कह पाते हम
ख़्वाब की कहानियाँ उनकी कुछ निशानियाँ.
जाने.... कैसे......
ख़्वाबों की जगह बनाऊँ,
टूटे...... कुछ छूटे........
उन ख़्वाबों को कहाँ सजाऊँ,
उन गलिओं का न कोई पता
उन रिश्तों में न अब है सदा
उन ज़ख्मों की अब न दवा
जो छू के आये हम.
जाने.... कैसे......
ख़्वाबों की जगह बनाऊँ,
टूटे...... कुछ छूटे........
उन ख़्वाबों को कहाँ सजाऊँ.