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Tuesday, July 26, 2011

"उन ख़्वाबों को कहाँ सजाऊँ"

जाने....        कैसे......   
ख़्वाबों की जगह बनाऊँ, 
टूटे...... कुछ छूटे........ 
उन ख़्वाबों को कहाँ सजाऊँ, 
उन गलिओं का न कोई पता 
उन रिश्तों में न अब है सदा 
उन ज़ख्मों की अब न दवा 
जो छू के आये हम.
जाने....        कैसे......   
ख़्वाबों की जगह बनाऊँ, 
टूटे...... कुछ छूटे........ 
उन ख़्वाबों को कहाँ सजाऊँ.  

मिलते-मिलते जो मिल जाते हैं 
वो ख़्वाब कहे जाते हैं, 
मिल के भी जो न मिल पाते हैं 
वो भी ख़्वाब कहे जाते हैं. 
काश के मिलसे उनसे कह पाते हम 
ख़्वाब की कहानियाँ उनकी कुछ निशानियाँ.
जाने....        कैसे......   
ख़्वाबों की जगह बनाऊँ, 
टूटे...... कुछ छूटे........ 
उन ख़्वाबों को कहाँ सजाऊँ, 
उन गलिओं का न कोई पता 
उन रिश्तों में न अब है सदा 
उन ज़ख्मों की अब न दवा 
जो छू के आये हम.

जाने....        कैसे......   
ख़्वाबों की जगह बनाऊँ, 
टूटे...... कुछ छूटे........ 
उन ख़्वाबों को कहाँ सजाऊँ.  




1 comment:

  1. kafi achi hai
    kal tak chhupa rakhe the dil me
    jo armaan hamne, ab badli jindagi me
    un lachar anaathon ko kahan tikau
    khuda bhi muh pher jaye mujhse
    jab puchu > un khwabon ko kahan sajau

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