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Sunday, February 13, 2011

तुम कहती हो तो

तुम  कहती  हो तो



चलो .. तुम  कहती  हो
तो  गिन   लेता   हूँ 
लेकिन  मेरी  मानो  तो...
कल  ये  जितने  थे 
और  कल  जितने  रहेंगे 
आज भी  उतने  ही  हैं ….
फिर  भी  तुम  कहती  हो 
तो  गिन  लेता  हूँ … 

अच्छा  एक  बात  बताना 
कि उस  रोज़ 
जब  तुम  मिली  थी 
तो  बार-बार  मेरे  पीछे 
उसे  देख  रही  थी 
जो  सहमा  सा 
मेरी  पीठ  के  पीछे 
ज़मीन  पर  पड़ा  था ..
वो  तो  मेरे  पीछे 
हमेशा  ही  होता  है  
जब  सुबह  आगे  होती  है 
और  कभी  आगे-आगे 
जब  पीछे  शाम हो रही होती  है .
ये  उसके  और  मेरे  बीच 
छाँव -धूप का 
कभी  नहीं  ख़त्म  होने  वाला  खेल  है ..
अब  शाम  ढलने  के  बाद 
फ़िर  एक  खेल ..
लेकिन  कोई  बात  नहीं 
तुम  कहती  हो  तो 
गिन  लेता  हूँ ..
लेकिन  मेरी  मानो 
तो  कल  ये  जितने  थे 
और  कल  जितने  रहेंगे 
आज  भी  उतने  ही  हैं ….
अच्छा  चलो  मान  लो 
कि  मैंने  गिन  लिया 
तो  बताओ  उस  गिनती  का 
तुम  क्या  करोगी ..
फ़िर  दुनिया  आ  जायेगी ..
समाज  जमा हो  जाएगा ..
नहीं  एक  कम  रह  गया.. 
नहीं  एक  ज्यादा  लग  रहा  है  शायद .. 
तुम  फ़िर कहोगी-  अरे  कैसे  !
तुमने  उनकी  टिमटिमाहट  पे 
निशान  नहीं  लगाया  होगा  शायद ..
निशान  लगा  के  रखते 
तो  गिनती  में  ग़लती  ना  होती  ..
अब  क्या  बताऊँ 
कि  हर  रोज़  जब 
तुम्हारे  जाने  के  बाद 
मैं  दफ़्न हो  जाता  हूँ 
तो  मेरा  दिल 
सीने  से  निकल  कर 
उफ़क में  चला  जाता  है ..
तुम्हें  जाते  हुए  देखने  के  लिए 
और  जब  तुम  आ  जाती  हो  तो ….
एक  कम  या  एक  ज्यादा ..
ये  सवाल  नहीं 
तुम्हारे  पीछे  खड़ी
दुनियावी  सियासत  की  क़ायनात  है 
जो  मोहब्बत  के  ज़ज्बात  को 
गिनने  को  ख़ुदाई  समझती  है ..
फ़िर भी, 
तुम  कहती  हो  तो 
गिन  लेता  हूँ ..
लेकिन  मेरी  मानो 
तो  कल  ये  जितने  थे 
और  कल  जितने  रहेंगे 
आज  भी  उतने  ही  हैं ….

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