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Sunday, September 12, 2010

फ़ासला


ओ आसमान!


शुक्रिया ------!


ज़रा बोल तो सही ऐसे कैसे लिखी तूने


फ़ासले की स्याही से तकदीर मेरी


इतनी अफ्राज़ीद इतनी सब्ज़।


फ़ासलों ने


मेरी ज़िन्दगी को दिया है


रूमानियत की बेपनाही


और ख़्वाबों की महबूबियत,


फ़ासला जो उम्र का है


सो पाने की गुन्जायिश कहाँ


तो खोने का डर नहीं


ये दूरी ही मुझे जिंदा रखती है।


फ़ासला, जो मेरी ज़ुबां


और तेरी इक निगाह की खातिर


दिल से निकली सदाओं में है


वो मुझे कविता देती है


फ़ासला, जो तेरी बेईन्तिहाई


और मेरी मख्मूर आवारगी में है


वो मुझे रौशनी देती है;


ज़िन्दगी......


मोहब्बत...........


उसपे तेरी मोहब्बत...........


ओ आसमान! तेरा बेहिसाब शुक्रिया.

1 comment:

  1. yuhin faaslo me kho se gaye hum
    aisa lagta hai khudko hai paa liya
    ek adad chahat thi hmari pass rakhne ki
    faaslo ne akshar chahat ka kafan hi oodha diya
    aab apni chahat se faasla bhi hai najdiki bhi
    ki faaslo se nafarat bhi hai aur mohbat si bhi
    faaslon ke karib hm rehne lage hai
    saans,muskan, dharkan sab mujhse
    faasla karne lage hai

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