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Friday, September 24, 2010

रुकूँ.......? या जाऊँ........?

कैसी कशिश है ये कैसी कहानी 
कि लब हैं लरजते, है आँखों में पानी.. 
कि कल जा का के मरहम ने 
फफोलों से पूछा है ----


रुकूँ......?या जाऊँ........?


बेबस झरोखों में हवा डोलती है 
जुल्फें तुम्हारी कई रात घोलती हैं 
तुझे जी के मरने लगे हम हमेशा 
बाग़ी कलम मेरी ये राज़ खोलती है 


कि कल जा के साँसों ने 
सीने से पूछा है 
रुकूँ......?या जाऊँ........? 


कोई हक़ नहीं तुझपे मैं ये जानता हूँ 
फिर भी तुझे एक मेहर मानता हूँ 
मेरी ज़िंदगी है शोलों के काबिज़ 
तेरे ओठों पे चमकती अब्र मांगता हूँ 


कि  कल जा के धड़कन ने 
दिल से पूछा है 
रुकूँ.......? या जाऊँ........?


कैसी कशिश है ये कैसी कहानी 
कि लब हैं लरजते, है आँखों में पानी.. 
कि कल जा का के मरहम ने 
फफोलों से पूछा है ----


रुकूँ......?या जाऊँ........?

1 comment:

  1. sath chood gayi sari duniya
    kal hansi muskan ne bhi palla chudaya
    aab bas dil se chipak khari hai yadein
    vo katil yadein bas tumhari

    aur lo...abhi abhi mere
    khwabo ne hai pucha
    ruku.....ya jaun?

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